Friday 27 April 2012

संस्कृति

केसा हो गया है यह जमाना
हर कोई पहनना चाहता है आधुनिकता का जामा
कहते हैं इंसान के पूर्वज थे बंदर
इसलिए नहीं दिखती हया इंसान के अंदर
अपनी विकसित सभ्यता को पल में छोड़ दिया
दूसरे की कोई संस्कृति नहीं उससे नाता जोड़ दिया
अपनी संस्कृति सिखाती नारी का सम्मान
जो ये न करे वो है राक्षस समान
आधुनिकता के नशे में चूर अपनी पीढ़ी
बिना सोचे विचारे नक़ल करने में लगी पड़ी
कहाँ गए वे लोग जो सिखाते थे
बुराई खत्म करने में असली बहादुरी
जो यह न करने में सफल हो सके
उसकी नहीं है इंसान बिरादरी
कहाँ गयी वो माता  जो गाती थी सीता,सावित्री गुणगान
वक़्त पड़ने पर उसमे आ जाती थी दुर्गा चंडी की जान
आधुनिक व्यक्ति को वर्षो से सम्मान मिलता आ रहा है
जमाना उसी के गुणगान गाता आ  रहा है
आधुनिक थी मीरा जिन्होंने बुराई पर अच्छाई की विजय दिलायी
आधुनिक थे कबीर जिन्होंने ज़माने को राह दिखायी
आधुनिकता बाहरी आडम्बर तक सीमित नहीं रहती है 
आधुनिकता मन की गहराईयों में उतर कर जिंदगी के मायने बदलती है


अक्षर

अक्षर का इस जग में खेल निराला
लगता है जैसे बंगाल का जादू काला
इसे जानने वाले अनपढ़ बन जाते विद्वानी
जो कलम से चलाये वो बन जाये इतिहास
जो जुबान से चलाये वो खोल जाये दिलो दिमाग के राज
इसे चलाया रत्नावली ने तो तुलसी जैसे मिले कवि
मानव जीवन को चमकाने वाले बन गए रवि
संगीत से जब हुआ इसका श्रींगार
जल गए महान तानसेन जैसे संगीतकार
शब्दों का लोहा तो माने हर अनपढ़ ज्ञानी
इसके आगे न चले किसी की मनमानी
जिसने पढ़ लिया ढाई अक्षर प्रेम का
हो गया सारा जग मन से उसका
ये तो है मानव जीवन की जान
इसके बिना तो सारा जीवन सुनसान
यह  न होता तो न होता ज्ञान विज्ञानं
यह न होता तो न होता कबीर,रहीम,रसखान

ढांचा समाज का

समाज का स्वरूप चंद लोग ही बदलते  हैं
जैसे सूरज अकेले ही जग में उजाला भरते हैं
एक ही शक्ति समाज को चलाती है
नेता के रूप में हमारे सामने आती है
इनमे से कुछ नेता बुराई का नेतृत्व करते हैं
देश,समाज,संस्कृति को खोखला करते हैं
एक तरफ तो सफ़ेद पोश बनकर सत्संग करते हैं
दूसरी तरफ ये जमाखोरों से विवाह करते हैं
जमाखोरी दुल्हन बन देश में आती है
भष्टाचार,रिश्वत को दहेज़ में लाती है
महंगाई को जन्म देकर दुःख  की जननी बन जाती है
देश में भुखमरी,गरीबी बसेरा कर जाती है
इससे निपटने में जनता एडी से चोटी तक का बल लगाती है
फिर भी दुखो के सागर से पार नहीं पाती है
पेट के लिए जनता दिन रात जुटी रह जाती है
रिश्ते,संस्कार,प्यार ताक पार रखकर धन के पीछे दौड़ती जाती है
हर तरफ ये शोर सुनाई दे रहा है
समाज इंसानों का नहीं मशीनों का बन रहा है
त्याग,प्रेम, अपनापन सब समाप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है
लालच कालसर्प की तरह आदर्श समाज को निगल रहा  है
इसको बचाने के लिए अच्छे इंसान को नेता बनाओ
अपना धन सरकार के हाथ में देकर नुक्सान न उठाओ
अपने नगर की भलाई के लिए स्वंय सहायता समूह बनाओ
धन देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति मत पाओ

Thursday 26 April 2012

माटी

कुदरत जब चाक पर माटी घुमाती
माटी से नए प्राणी के पुतले बनाती
कुदरत की रचना ये माटी के पुतले
माटी पर पलते निखरे उजले
कुदरत जब  इन पुतलो को भट्टी में पकाती
कोई कम कोई मध्यम कोई ज्यादा पक जाती
जो माटी के पुतले कम पक पाते
जरा सी ठोकर में वे टूट जाते
जो थोडा सा और पक जाते
जिंदगी को हँसते रोते जी जाते
जो पूरी तरह से पक जाते
इस दुनिया को कर्मो से रोशन कर जाते
माटी के पुतलो में जान डाली
पुतलो ने माटी से कई रचना बना  डाली
माटी को जब पुतले भट्टी में पकाते
सुंदर लाल सी ईटो के ढांचे बनाते
माटी को जब ये चाक पर चढाते
तरह तरह के बर्तन बनाते
माटी पर जब हल चलाते
माटी से ये अन्न पा जाते
एक ही माटी की है सब रचना
माटी को बाँट देश बनाया अपना
माटी के अंदर अनेक खजाने
जल सोना चाँदी हीरे की खाने
माटी कहती अनगिनत कहानी
आज, कल और सदियों पुरानी
माटी कहती अपनी आत्म कथा
उसमे झलकती उसकी व्यथा
इसी के पुतले इसको गन्दा कर जाते
इसमें पैदा,पलते और मिल जाते
माटी का यह जगत है सारा
फिर भी है यह कितना प्यारा
माटी सबकी जननी बनी है
इसलिए माता समान पूजनीय है

Tuesday 17 April 2012

नर्स

अस्पताल के हर गलियारे में नर्स घुमती नजर आती है 
विशेष पोशाक पहने मुस्कान के  साथ मरीज के पास जाती है 
दिल में आशीषो को पाने की तमन्ना आँखों में प्रेम लिए आती है
मरीज के साथ कोई विशेष रिश्ता नहीं फिर भी सम्पूर्ण समर्पण की भावना दिखाती है 
सेवा ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा ये सारे गुणों को अपना आभूषण बनाती है 
इन सारे गुणों के साथ वह अपना हर अनमोल पल मरीज की सेवा में लुटाती है 
मृत्यु रूपी रात्रि से जीवन रूपी खुबसूरत सवेरे की ओर ले जाती है 
ऐसा करने के लिए वो एडी से चोटी तक का बल लगाती है 
वह सोचती है कि उसे चाहिए ही कितना तन ढकने, पेट भरने, धुप, बारिश से बचने के अलावा 
यही आत्म संतोष उसकी भक्ति और वो स्वंय सन्यासी बन जाती है 
नर्स बनकर समाज को सेवा के साथ नेकी का पाठ पढाती है
बदले में इसी समाज से थोड़ी सी सम्मान कि लालसा जोड़े जाती है 
इंसान कि तरह नजर आये मगर फ़रिश्ते का चरित्र  दिखाती है
खुदा के पास रहने वाली खुशनसीब आत्मा बन जाती है