Friday, 27 April 2012

अक्षर

अक्षर का इस जग में खेल निराला
लगता है जैसे बंगाल का जादू काला
इसे जानने वाले अनपढ़ बन जाते विद्वानी
जो कलम से चलाये वो बन जाये इतिहास
जो जुबान से चलाये वो खोल जाये दिलो दिमाग के राज
इसे चलाया रत्नावली ने तो तुलसी जैसे मिले कवि
मानव जीवन को चमकाने वाले बन गए रवि
संगीत से जब हुआ इसका श्रींगार
जल गए महान तानसेन जैसे संगीतकार
शब्दों का लोहा तो माने हर अनपढ़ ज्ञानी
इसके आगे न चले किसी की मनमानी
जिसने पढ़ लिया ढाई अक्षर प्रेम का
हो गया सारा जग मन से उसका
ये तो है मानव जीवन की जान
इसके बिना तो सारा जीवन सुनसान
यह  न होता तो न होता ज्ञान विज्ञानं
यह न होता तो न होता कबीर,रहीम,रसखान

No comments:

Post a Comment