Thursday 3 May 2012

धर्मं

धर्मं की एक अपनी अलग  ही कहानी
इसके ठेकेदारों ने अपने तरीके से बखानी
वास्तव में धर्म की परिभाषा समाज समझ न पाया
जो सीख पाया वही सभ्य समाज कहलाया
धर्म अच्छे बुरे कर्मो में भेद बताता है
सबको ईश्वर की संतान बनाता है
जिस ईश्वर का डर दिखाकर धर्म इंसान
को इंसानियत सिखाता है
उसी धर्म की आड़ में इंसान आपस में ही
लड़कर हैवानियत दिखाता है
धर्म और कर्म में कोई भेद नहीं होता है
मर्यादित कर्म ही धर्म का दूसरा रूप होता है
कोई बुराई नहीं इंसानियत को दिखाने में
इससे कोई बदलाव नहीं अपने धर्म निभाने में
धर्म की रक्षा करने में कर्म की रक्षा हो जाती है
ये बात इंसान के दिमाग से क्यों निकल जाती है


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